राम राम जब नाम उच्चारा, हरषे हृदय मिटे दुख सारा
सुख सुकून समृद्धि घर अहहिं, द्वेष क्लेश जीवन पर जहहिं ।
राम कृपा करे दूर निराशा, सुमिरन राम सुघर करे भाषा
कृपा राम बैकुंठ मिले घरहिं, रोग वात घात नहीं धरहिं।
जीता वही दंभ जो हारा, अजर अमर वह काल पछारा
सुमिरन राम सुधि नहीं अपनी, उसे ठगे नहीं माया ठगनी।
जिसके राम उसे भय कैसा, रक्षक भगत नहीं उन जैसा
उनकी कृपा हर भव तरनी, एक प्रभु की कथनी करनी।
राम विलग विवेक अंधियारा, विद्विष हीन नियति का हारा
जैसी करनी वैसी भरनी, विलग राम विरुद्ध वैतरनी।
हर उलझन की नाम यह सुलझन, करो सदा सुमिरन कीर्तन
क्षुधा लोभ नहीं है भरनी, त्याग त्याज्य धाम सिय चलनी।
चातक चित्त दिव्य चक्षू प्यासा, दुर्लभ देव दरस की आशा
काया माया बुद्धि मति हरनि, दीन दास दयानिधि शरणी।
है अनिल सब दोष तुम्हारा, समझ लिए स्वर्ग जग प्यारा
नश्वर देह एक दिन मरनी, सत्य राम चिता है जरनी।