नैनन नीर संदेशा नीके
अवध अवतरित रघुराई
जन्म सार्थक जी के !
प्रकृति नृत्य तन्मय तल्लीन
भगत विभोर भक्ति में लीन
निर्धन, नृप , सलज्ज , कुलीन
प्रीत, रीत, समाज, यकीन
युग प्रतिबिंबित राममय आभा
भाल रोली के टीके !
घर, आँगन, अटारी अजोर
जल,पय, पवन, पुष्प हिलोर
छावक, शावक, वृद्ध, किशोर
मन मुदित मुग्ध मति-मोर
धरा धरी धानी बिछावन
ओढ़नी उढ़ायी तारक सी के !
भूषण, पट, मेवा, मोतीचूर
तांदुल, धान्य, फर, खजूर
तोरण, पादुका, मुकुट, धूर
नात, जात, संभ्रांत, नर, सूर
पधार प्रांत सुदूर दूर से
घर-नगर श्वसुर नानी के ।
सबरी, निषाद अवतरित प्रासाद
सिय,लखन, हनुमत के साथ
कलानिधि त्रिभुवन के नाथ
जीवन-मर्यादा उन्नत माथ
सहस्त्र सूर्य पथ दीप बने
शीतल छवि में फीके ।
अनिल यहाँ वहाँ मैँ धाऊँ
वहीं राम जहां मैँ जाऊँ
नहीं गति अपनी कह पाऊँ
कृपा प्रभु की भव तर जाऊँ
अपनी सारी पूंजी जोड़ के
करूँ मैं आरती देशी घी के !