दस-आनन विष बेली, कलुषित हिय-सिंधु हलाहल
नव-युग में नव-प्राण के नव-मंत्र कर संधान, राम !
संस्कार क्षीण, पथ कुपथ, निर्लज्ज गोचर कुप्रथा
नयन नम नत नर-नीचता से कर सिया उद्धार, राम !
खग मृग सिंह श्रृंगाल व्याल व्याकुल विहीन वास
धरा सर सरित हरित प्रदेश कर दे वर आगार, राम !
चंचल मन, उथल जीवन, अंतर अभिलाषा अधीर
तुम्ही भंवर तुम्ही कगार खेवैया नैया पतवार, राम !
माया मृग स्वर्ण दिव्य यथा कर्म व्यर्थ परिहार्य धर्म
निशि चर वेदना पर उल्लासित युग-उर उबार, राम !
न विधि, न विधान, न ज्ञान-मान; बस अभिमान
अवचेतन अवमानना का अवश्य हो धिक्कार, राम !
दीन नृप की अवनि एक, अनंत अंबर एक हो
अनिल मरा - अधमरा; हो तुम में एकाकार, राम !